Tuesday, April 9, 2013

कहाँ गर्मजोशी से कभी, हाथ मिलाया तुमने ...

दोस्त बनकर भी न कभी, साथ निभाया तुमने 
'मैं तो बस ऐसा ही हूँ', कुछ ऐसा बताया तुमने 

तज़किरे कितने, सुबहो शाम किये हैं हमने 
न मैं कुछ समझी, न कुछ समझाया तुमने 

ख़ार-ख़ार लगने लगे, जो थे शाख़-ए-गुलाब 
कैसे-कैसे फूल बाग़ीचे में लगाया तुमने 

ज़ख्म-ज़ख्म हो गई, अब मेरी क़वा ही पूरी  
दूर से भी कभी मरहम, न लगाया तुमने  

तक़्ल्लुफ़ में भी 'अदा', कुछ इख़लास ज़रूरी है 
कहाँ गर्मजोशी से कभी, हाथ मिलाया तुमने 

तज़किरे  = उल्लेख, Talk about  
तक़ल्लुफ़ = औपचारिकता
इख़लास = सच्चाईप्रेम, निस्वार्थ पूजा
क़वा = कुरता, खोल 

अब सुनिए यह गीत :'प्रथम रश्मि का आना' स्वर स्वप्न मंजूषा 'अदा' , संगीत संतोष शैल.....

महाकवि 'पंत' की कविता 'प्रथम रश्मि'

प्रथम रश्मि का आना रंगिणि!
तूने कैसे पहचाना?
कहां, कहां हे बाल-विहंगिनि!
पाया तूने यह गाना?

सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में,
पंखों के सुख में छिपकर,
ऊंघ रहे थे, घूम द्वार पर,
प्रहरी-से जुगनू नाना।

शशि-किरणों से उतर-उतरकर,
भू पर कामरूप नभ-चर,
चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,
सिखा रहे थे मुसकाना।

स्नेह-हीन तारों के दीपक,
श्वास-शून्य थे तरु के पात,
विचर रहे थे स्वप्न अवनि में
तम ने था मंडप ताना।

कूक उठी सहसा तरु-वासिनि!
गा तू स्वागत का गाना,
किसने तुझको अंतर्यामिनि!
बतलाया उसका आना!

छिपा रही थी मुख शशिबाला,
निशि के श्रम से हो श्री-हीन
कमल क्रोड़ में बंदी था अलि
कोक शोक में दीवाना।

प्रथम रश्मि का आना रंगिणि
तूने कैसे पहचाना?
कहाँ-कहाँ हे बाल विहंगिनी
पाया तूने यह गाना?
अब का कहें, हमहीं गा रहे हैं ....(दोनों में से कोई एक प्लेयर काम करेगा :))







Powered by Podbean.com

8 comments:

  1. आपकी आवाज में सचमुच जादू है पंत की यह पंक्ति मुझे हमेशा बहुत भाती थी और मन में गहरे अर्थ दे जाती थी आज इसे कम्पोजिशन से सुना तो बहुत अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  2. पहली बार अपनी ये प्रिय पंक्तियाँ, अपनी प्रिय आवाज़ में सुनी.

    इसे सुर में ढालने वाले संतोष जी का भी कोटिशः आभार

    ReplyDelete
  3. अब ग़ज़ल पढ़ी...हमेशा की तरह सुन्दर ग़ज़ल
    पर मूड कुछ बदला हुआ सा है

    {आजकल मूड स्विंग्स बहुत हो रहे हैं :)..कभी प्यार में पगी कविता, कभी शिकायत वाली तो कभी भारी भरकम सामाजिक आलेख और कभी देश की हालात पर चिंतन ...लगी रहो..अच्छा लग रहा है,तुम्हे पढना आई मीन तुम्हारा लिखा हुआ पढना :)}

    ReplyDelete
  4. तज़किरे कितने, सुबहो शाम किये हैं हमने
    न मैं कुछ समझी, न कुछ समझाया तुमने

    आवाज के जादू के साथ लेखन का जादू बतलाता है एक देखकर मन को तसल्ली से मन को भरिये तो दूसरा मन को तरंगित कर जाता है .
    हमर खाते में एक आपकी अनचाही टिपण्णी छुट गई है वापस आपको सप्रेम भेंट
    दराल साहब की ही बात दोहराती हूँ :)

    वैसे तो काफी देर हो ही चुकी है फिर भी, पानी की समस्या पर सरकार ने अगर अब भी ध्यान नहीं दिया तो 2025 से भारत में पानी के लिए लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जायेंगे। पानी के मामले में भारत की स्थिति सबसे ख़राब है। अन्य देशो में भी पानी की किल्लत होने वाली है, लेकिन भारत अपनी जनसँख्या की वजह से, भयावह स्थिति में आने वाला है।
    हर हाल में पानी बचाने की कोशिश कीजिये, पानी का दुरूपयोग अपराध है।

    ReplyDelete
  5. क्या अदा क्या जलवे तेरे पारो.....
    वाह!!!
    दाद कबूल करो..!!

    अनु

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुती.आपका मधुर गीत(पूरा) सुना,बहुत ही सुन्दर लगा.मन प्रसन्न हो गया.

    "जानिये: माइग्रेन के कारण और निवारण"

    ReplyDelete
  7. आपकी आवाज़ का जादो चल रहा है ... अभी भी सुन रहा हूं जैसे जैसे लिख रहा हूं ..

    ओर अब आपकी अज़ल का कमाल भी पढ़ रहा हूं ... बहुत खूब ...
    ख़ार-ख़ार लगने लगे, जो थे कभी शाख़-ए-गुलाब
    कैसे-कैसे फूल बाग़ीचे में लगाया तुमने ..
    मस्त शेर है ...

    ReplyDelete
  8. वाह, ग़ज़ल और गायकी।

    ReplyDelete