Thursday, May 24, 2012

कुछ तो बात है.... बिहार के पानी में...!

कल हमारे घर हमारे एक मित्र, जो सरदार हैं, आये...बहुत ही खूबसूरत शख्शियत के मालिक हैं वो...रंग ज़रा सा दबा हुआ है उनका, बाकी,  कद-काठी, डील-डौल तो बस माशाल्लाह, सर पर करीने से बनी हुई लाल पगड़ी ,  उतने ही करीने से सजी दाढ़ी और मूंछ कुल मिलाकर रौबदार चेहरा....चाय की टेबल पर, बात चीत की नईया ...ओसामा बिन लादेन को वाट लगाती हुई..अमेरिका के बे-सर पैर की विदेश नीति को टक्कर मारती हुई पहुँच गयी...हिन्दुस्तान की आबो हवा तक...


हिन्दुस्तान की गर्मी की जब बात चली तो...हम भी का जाने क्यूँ पगड़ी की लम्बाई-चौडाई में उलझ गए...पूछ ही लिया.. विज साहब..! गर्मी में पगड़ी तो बड़ी दुःखदाई होती होगी...कहने लगे.. परेशानी तो होती है...लेकिन अब हमें भी इसकी लत लग चुकी है ...मैंने कहा, वैसे ये पगड़ी है बड़े काम की चीज़ ...बहुत सारे ऐब छुपा देती है...अब देखिये ना...हमने कभी कोई गंजा सरदार नहीं देखा...जबकि हम भी जानते हैं कि सरदार भी  गंजे होते हैं...अब इस पगड़ी की महिमा देखिये ...सरदारों की पगड़ी के नीचे, घने-काले रेशमी बालों की आस लगाये बैठे हम जैसे लोग, अगर अपने अड़ोस-पड़ोस में जरा सी ताका-झांकी करें , तो  किसी अटरिया पर किसी सरदार जी को,  धूप में अपनी ज़ुल्फ़ सुखाते देख, गश खा जाते हैं....गाय, जमके खेती चर गयी है,  ऐसा ही कुछ नज़ारा नज़र आया है......लेकिन किसी पर्दानशीं के मुहासों वाले चेहरे की तरह,  आपलोग भी अपनी जुल्फों को पग-नशीं कर लेते हैं...और हम गंजे सरदारों के दर्शन से महरूम रह जाते हैं.. 
विज साहब ! आप समझ सकते हैं, बिन पगड़ीवालों के साथ ये कितनी बड़ी नाइंसाफी है, .....ये सुनते ही वो ठहाका मार कर हंस पड़े...कहने लगे, ये बात आपने सही कही है...


अब वो पगड़ी की महत्ता की बात करने लगे थे...कहने लगे हमारे दसवें गुरु, 'गुरु गोविन्द सिंह जी ' चाहते थे कि  हम सरदार बिलकुल राजाओं की तरह लगे...इसलिए उन्होंने हमें पगड़ी पहनने का आदेश दे दिया...इस पगड़ी की वजह से ही तो हम सरदार राजा की तरह लगते हैं..सच पूछिए तो, ये हमारे सिर का ताज है...


अब हम ठहरे बिहारिन... एक बिहारिन दूसरे बिहारी के मन की बात न जाने... ई भला कैसे हो सकता था...! हमने कहा...विज साहब 'गुरु गोविन्द सिंह जी' थे तो बिहारी ...और ई पक्की बात है, ऊ 'राजा' 'प्रजा' की खातिर ई काम नहीं किये थे...बिहारी लोग बहुत प्रैक्टिकल होते हैं...माजरा कुछ और रहा होगा...
और तब हम लग गए व्याख्या करने में...


हमारा तर्क बड़ा ही सीधा-सरल था...हम बोले....जहाँ तक हम जानते हैं 'सिख' का अर्थ होता है 'शिष्य', श्री गुरु गोविन्द सिंह जी..उस दिनों औरंगजेब के पाँव उखाड़ने में लगे हुए थे...और इसके लिए उन्होंने एक सैन्य-टुकड़ी की स्थापना की...ज़ाहिर सी बात थी, हर आर्मी की तरह इस टुकड़ी को भी एक ड्रेस कोड दिया गया...और ये ड्रेस कोड बने ...केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण....


केश : सेना के बहादुर नौजवान हमेशा जंगलों में ही छुपे रहते थे...उनका जीवन छुपने-भागने में ही बीतता था..इसलिए उनके पास हजामत बनाने जैसी बातों के लिए फुर्सत ही कहाँ थी...बढ़ी हुई दाढ़ी के कई फायदे थे, वो आसानी से मुग़ल सैनिकों में मिल जाते थे, बढ़ी हुई दाढ़ी उनके लिए नकाब का भी काम करती थी, जिससे वो मुग़ल सैनिकों को चकमा देकर भाग सकते थे....सिर के लम्बे बाल उसकी खोपड़ी की सुरक्षा के लिए भी उपयुक्त थे..और कभी कभी किसी महिला का रूप धारने में भी सहूलियत होती थी...पगड़ी की आवश्यकता भी इन्ही लम्बे बालों की वजह से आन पड़ी...पगड़ी शायद ६ गज लम्बा मलमल के कपड़े से बनती है...यह कपड़ा हर तरह से उपयोगी था...पतला मलमल जल्दी सूख जाता था, हल्का इतना कि ये बोझ भी नहीं था और  मजबूत ऐसा कि रस्सी के काम आ जाए... सर पर बाँधने से सिर की बचाईश भी हो जाती थी...जब दिल किया पहन लिया, जहाँ दिल किया बिछा लिया और जरूरत पड़ने पर ओढ़ लिया...

कंघा : लम्बे बाल और लम्बी दाढ़ी...जंगल का जीवन और भागा-दौड़ी....जब खाना-पीना ही मुहाल था तो केश-विन्यास की बात ही कौन सोचे भला...! और जब हजामत नहीं हो पाती थी तो बालों को तरतीब से रखने के लिए इससे उपयुक्त उपकरण और भला क्या हो सकता था...! इसलिए हर सैनिक अपने पास कंघा रखता था..


कड़ा :  कड़ा, धातु का बना हुआ मजबूत छल्ला होता है, इसका उपयोग कई तरह से किया जा सकता था ..रस्सी बाँधने के लिए, रस्सी पर सरकने के लिए, पेड़ों पर चढ़ने के लिए,   और ज़रुरत पड़ने पर हथियार की तरह भी इसका इस्तेमाल बहुत आराम से किया जा सकता था...


कच्छा : यह पुरुषों के लिए एक ढीला-ढाला अंतरवस्त्र (underwear) होता था, आराम दायक और सुविधाजनक..


कृपाण : कृपाण, एक तलवारनुमा घातक हथियार होता है...जो आकार में तलवार से छोटा होता है...जिसे आसानी से पहने हुए वस्त्रों के अन्दर छुपाया जा सकता था..और ज़रुरत पड़ने पर  बाहर  निकाला भी जा सकता था ...आकार छोटा होने के कारण यह दूर से दिखाई भी नहीं पड़ता था, लेकिन काम यह तलवार की तरह ही करता है...इसे बहुत ही उपयोगी हथियार माना जा सकता है...बिना शक-ओ-शुबहा इसे लेकर सिख सैनिक कहीं भी आया-जाया करते थे...


मेरी अधिकतर बातों से विज साहब को कोई परहेज़ नहीं हुआ ...बस मेरा गुरु गोविन्द सिंह जी को 'बिहारी' कहना उनको रास नहीं आया...परन्तु इतिहास को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता ...श्री गोविन्द सिंह जी का जन्म 'पटना साहब' में हुआ था, यह उतना ही सच है जितना सूरज हर रोज़ निकालता है...उनकी इस कामयाबी में बिहार के पानी का असर भी हुआ ही होगा....और इस बात को झुठलाया भी नहीं जा सकता है...

सिर्फ गुरु गोविन्द सिंह जी ही क्यूँ...बिहार में तो बड़े-बड़ों को ज्ञान की प्राप्ति  हुई है...जैसे गौतम बुद्ध, अगर वो 'बोध गया' नहीं जाते तो क्या वो बुद्ध कहाते ?  और महावीर जी...? जैन धर्म के प्रवर्तक श्री महावीर जी का भी जन्म बिहार में ही हुआ था...
सच कहें तो...गुप्त वंश, मौर्य वंश इत्यादि महान साम्राज्यों की राजधानी बनने का गौरव, पाटलिपुत्र अर्थात पटना को ही प्राप्त हुआ है...दुनिया भर में प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय भी बिहार में ही है...मेगास्थनीज, जैसा यूनानी राजदूत जिसे सेल्यूकस ने यूनान से भेजा था... फाहियान और हुएनसांग जैसे यात्री, भारत दर्शन करने के लिए बिहार ही आये थे...  संक्षेप में कहूँ तो ..भारत का प्राचीन इतिहास का अर्थ ही है बिहार का इतिहास....
इन सारी बातों से एक बात तो सिद्ध हो ही रही थी...कुछ तो बात है.... बिहार के पानी में...!

हाँ नहीं तो..!
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए..आवाज़ 'अदा' की...