Wednesday, May 16, 2012

चेहरे....


ताल्लुक़ से खिलवाड़ न कर, रिश्ते बिगड़ जाते हैं
आँख में होकर भी चेहरे, दिल से उतर जाते हैं  

कुछ चेहरों को सँवरने की, ज़रुरत कहाँ पड़ती है 
अक्स उनका देख के कितने, आईने सँवर जाते हैं

इस ज़मीं से फ़लक तक की, दूरी नापने वालो 
तेरे वज़ूद से तेरे फ़ासले, तुझको क्या बताते हैं ? 

मैं तेज़ धूप में रहना चाहूँ, संग मेरे मेरा साया है
छाँह में मेरे खुद के साए, मुझसे मुँह छुपाते हैं 

आँधी के सीने में 'अदा', महबूब की चाहत होती है 
रेत पे उसकी साँसों से, कई अक्स उभर कर आते हैं

आपके हसीन रुख़ पे...आवाज़ 'अदा' की

Get this widget | Track details | eSnips Social DNA

चंदा ओ चंदा....आवाज़ 'अदा' की 
                   

No comments:

Post a Comment