Monday, February 20, 2012

हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास...कितना सच कितना झूठ..

काफी पहले सुना था कि इंदिरा गाँधी 'काल पात्र' ज़मीन में दबवा रहीं हैं....उन काल पात्रों में भारत के ऐतिहासिक तथ्य होंगे....उन्होंने उन पात्रों में कौन से ऐतिहासिक तथ्य डाले होंगे..ये सर्व-विदित है...या फिर अनुमान तो लगाया ही जा सकता है....ठीक उसी तरह सुना है लोग ‘हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास’ लिख रहे हैं....उन इतिहासकारों से मेरा प्रश्न यह है कि क्या इस तथाकथित 'इतिहास' को लिखने से पहले, ब्लोगरों को अवसर दिया गया है कि वो उसे देखें-पढ़ें और जाने कि उसमें जो बातें कही गयीं हैं वो सब सच है ? क्योंकि अब वो ज़माना तो रहा नहीं कि 'आईने अकबरी' और 'अकबरनामा' लिख दिया और कोई चूँ भी नहीं कर पाया...आखिर ये दस्तावेज़ है आने वाली पीढ़ियों के लिए...इसलिए इनका सत्यापन होना ही चाहिए.....

जब भी ऐसी किताब लिखी जाए तो, छपने से पूर्व ही इसके तथ्यों को सार्वजनिक करना चाहिए, ये किसी की जागीर नहीं कि कुछ भी लिख दिया और छाप दिया..पूरी ब्लोगर बिरादरी को पूरा हक है, कि वो जाने इसमें क्या लिखा जा रहा है...क्योंकि कुछ हद तक, हम सभी ब्लोगर चश्मदीद गवाह तो हैं ही ....वरना ये तो अपनी डफली अपना राग भी हो सकता है...और किसी को पता ही न चले, कि सच क्या था/है ...और आने वाली पीढ़ी गलत तथ्यों को सही समझ बैठे...मैं नहीं कहती कि इस पुस्तक में कुछ गलत ही होगा...लेकिन सब सही ही होगा ये भी नहीं मानती मैं...ये किसी की कविता या कहानी की किताब नहीं है..हम बात कर रहे हैं 'ब्लागिंग के इतिहास' की, इसलिए इसमें व्यक्तिगत परिपेक्ष से ज्यादा सार्वजानिक मंतव्य मायने रखता है...और अभी तो हिंदी ब्लोगिग अपने चार पैरों पर भी नहीं चल पायी है...

छपने से पूर्व इसे सार्वजनिक करने में कोई असुविधा भी नहीं होनी चाहिए....ख़ास करके जब आज इलेक्ट्रोनिक का ज़माना है...बड़ी आसानी से इसे सार्वजनिक करके लोगों का मंतव्य लिया जा सकता है ....इस तरह की पुस्तकों को अपनी मर्ज़ी से छपवा देना उचित नहीं है...आखिर यह पुस्तक एक दस्तावेज़ तो है ही...जो कई सालों तक बरकरार रहेगी.....जिसके तथ्य लेखक ने अपनी समझ और वातावरण के हिसाब से लिखा होगा और उनकी नज़र में वो सब सही ही होगा परन्तु यह भी ज़रूरी नहीं कि वो तथ्यों के मामले में सही हो...इस तरह की पहल को अगर सबसे साझा किया जाए, तो एक बात और अच्छी होगी...कोई कभी किसी पर उंगली नहीं उठा पायेगा कि, किसी ने अपनी मनमानी कर ली...और सबसे अच्छी बात ये होगी, जब ऐसी पुस्तक, कई आँखों से होकर गुजरेगी, तो पुस्तक की प्रमाणिकता बढ़ जायेगी, .. वर्ना यहाँ तो हर बात में, फिर चाहे वो पुरस्कार हो या समीक्षा, तू मेरी पीठ ठोक, मैं तेरी ठोकता हूँ...का चलन चल ही रहा है...और ये बात किसी से छुपी भी नहीं है...

दूसरी बात, क्या इस पुस्तक में उन काले अध्यायों का जिक्र है...जैसे अनामी, बेनामी, किल्लर झपटा, जलजला इत्यादि ..क्योंकि यहाँ सब कुछ सफ़ेद नहीं है ...इनका भी ज़िक्र होना ही चाहिए ताकि आने वाले लोग जान सकें...ब्लॉग जगत में ऐसे घटिया लोग भी थे....जिन्होंने ब्लॉग की ज़मीन को ना सिर्फ गन्दा किया,  अपितु गंदगी की हर सीमा  पार कर दी थी....इनका ज़िक्र होना ही चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी उनको लानत भेजती रहे...

कोई कह सकता है कि आप इस पुस्तक को खरीदें और पढ़ें....लेकिन मैं ऐसा क्यों करुँगी....इस इतिहास का मैं ख़ुद एक हिस्सा हूँ..और हर वो ब्लाग्गर हिस्सा है इस इतिहास का, जिसने कभी भी, कुछ भी सार्थक या निरर्थक लिखा है ...हर ब्लोगार इस इतिहास का अभिन्न अंग है...इसलिए इस इतिहास को लिखने से पूर्व ही ब्लॉग जगत से इसे साझा करना चाहिए था.... साझा नहीं करना उचित नहीं हुआ...
आज के ज़माने में इतिहास एक व्यक्ति नहीं लिख सकता...हम सब मिल कर लिख ही रहे हैं...क्योंकि अभी तक हम इतिहास नहीं बने हैं....सबकुछ सामयिक है...
अतः कोई भी लेखक 'ब्लॉग का इतिहास' लिखने से पूर्व...ब्लोगरों को उसके तथ्य से ज़रूर अवगत कराये...वर्ना सब अपना-अपना इतिहास लिख जायेंगे...और सच्चाई कभी किसी को पता नहीं चल पाएगी और ये हमारी आने वाली कई पीढ़ियों के साथ छल ही माना जाएगा....जिसपर एक पुस्तक और लिखी जा सकती है....:)

हाँ नहीं तो..!!