Wednesday, February 1, 2012

चरमराती अर्थ-व्यवस्था और 'विवाह संस्था'



कल एक समाचार पर नज़र पड़ी...ईजिप्ट में कुँवारों की भरमार होती जा रही है...जो विवाह योग्य तो हैं लेकिन विवाह कर नहीं सकते...कारण है उनकी माली हालत...पैसे की इतनी तंगी हो गई है कि लड़के अब सिर्फ प्रेम कर सकते हैं विवाह नहीं....

भारत में भी आज का युवा वर्ग ' विवाह ' करने को उतना इच्छुक नज़र नहीं आता...और कनाडा-अमेरिका में तो पहले से ही इस 'बंधन' को बंधन ही माना जाता है....'लिव-इन रिलेशन' जिस तरह भारतीय समाज में सहजता से अपना अधिपत्य जमाता जा रहा है...लगता है एक दिन 'विवाह' नाम की संस्था हमारे समाज से लुप्त हो जायेगी.... 'विवाह' जैसी संस्था का अंजाम अब जो भी हो लेकिन ग़ौरतलब बात ये है कि बात आकर रूकती है पैसे पर ही....लड़की और उसके माँ-बाप पैसेवाला वाला घर और वर चाहते हैं ..और लड़के नौकरीवाली लड़की...
शादी अब जोड़ों के लिए, अपना भविष्य सुरक्षित करने का साधन बनने लगा है...
जोड़े बेशक ऊपर से बन कर आते हैं परन्तु, उनका जुड़ना या ना जुड़ना दुनिया की अर्थ-व्यवस्था पर भी अब निर्भर करने लगा है...
ईजिप्ट इस बात का ज्वलंत उदाहरण बन चुका है कि उसकी डूबती अर्थ-व्यवस्था ने 'विवाह' जैसी बुनियादी ज़रुरत पर अपना अंकुश रख दिया है...तो क्या सचमुच दुनिया की चरमराती अर्थ-व्यवस्था 'विवाह' जैसी संस्था को निगल जाने को आतुर है या फिर आज की युवा पीढ़ी अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है  ?
इस बात पर ज़रा गौर फरमाएं...!!