Wednesday, July 20, 2011

कहीं दूर लिए जा रही है....




जाने क्यों मुझे लगता था
मैं हमेशा कुछ ढूंढ रही हूँ
परन्तु नहीं जान पाती थी
क्या ढूंढ रही हूँ  !
मेरी खोज गहरी होती जाती थी |
और भी गहरा जाती थी,
हर दिन मेरी अंतर्यात्रा की शुरुआत |
फिर...
एक दिन मैं दंग रह गयी,
तुम अमूर्त सी रचना नज़र आये,
मेरे अंतर के तार झनझनाए,
कहीं कोई कहानी नज़र नहीं आयी,
न ही नज़र आये सवालों के प्रतिबिम्ब,
मेरी चाहत मुझसे परे,
तुमसे सामंजस्य बिठाने लगी,
मेरे सपने किसी जादूई तूलिका में,
इन्द्रधनुष से उतरने लगे
भावनाएं आहिस्ता आहिस्ता,
व्यक्त होने लगीं,
और राहें सृजनात्मक लगने लगीं |
ज्यों-ज्यों मैं इन राहों पर बढ़ने लगी,
तुम्हारे प्रेम और मेरी साधना ने,
मेरी अंतर्यात्रा को और प्रशस्त कर दिया |
जबसे मेरी आकांक्षाओं ने मेरे भय को
पराजित किया है,
तब से जीवन सत्य लगने लगा |
तुम चटख रंगों का अमूर्त सृजन हो,
जिसकी अभिव्यक्ति मुझ पर,
असर डाल रही है,
और धीरे धीरे मुझे वास्तविकता की सीमाओं से परे,
कहीं दूर लिए जा रही है....

Friday, July 15, 2011

दवा न करेंगे....


दिल में हूक जो उठती है
उसका ज़ायका उम्दा है
इसे दर्द बता कर
कभी रुसवा न करेंगे...
दीवाने तेरे हैं हम
और दीवाना बना देना
दीवानगी की अब कोई
दवा न करेंगे....


Wednesday, July 13, 2011

'अहम् ब्रह्मा अस्मि'....!!


जीवन का हरएक दृश्य, जब प्रत्यक्ष आ जाता है 
मन का पाखी बंधनों से, मुक्त हुआ सा जाता है 
प्रशांति की ओर कदम तभी, हठात से बढ जाते हैं 
अति-धनिष्ठ संबंधों से स्वयं को, उऋण तब पाते हैं
समाधि में ध्यान मग्न, हो जाएगा हृदय जब लीन
जगन्नियंता परम-ब्रह्म में,  होगा मन भी विलीन
तब...
एक विचार जो उठता है वो कुछ विचलित कर देता है
'अहम् ब्रह्मा अस्मि'...., कहने वाला दम्भी मानव, 
क्यों संघर्षरत ही रहता है..?


Thursday, July 7, 2011

हे हृदयेश...


मम मन मयूर, मुदित हुआ
जब हृदयंगम, कोई  सुर हुआ
गात पात सम लहराया,
उषा सम आनन उर हुआ,
ऊबर गया, मन मंदिर तम से
और देह प्रकाशित पुर हुआ,
हे हृदयेश, देख तेरा वेश
प्रार्थना, उर अंकुर हुआ,
तव प्रभा से प्रदीप्त जीवन,
पुनः पुनः प्रेमातुर हुआ.....

Sunday, July 3, 2011

सिर्फ़ यथार्थ सी नज़र आतीं हैं.....


तुम्हारी अभिव्यक्तियाँ 
उपमाओं से लदी-फदी, 
मेरी कल्पनाओं को
जीवंत कर देती हैं,
सपने और फैंटसी को,
मूर्त रूप दे देतीं हैं,
कुछ मासूम से आस्तित्व,
तितली से बन जाते हैं,
जीवन की जटिलताओं से,
दूर कहीं ले जाते हैं,
वो सहज से बचपन मुझसे आकर,
रेशम से लिपट जाते हैं,
मेरी अभिव्यक्तियाँ,
तुम्हारी अभिव्यक्तियों को,
सहज ग्रहण कर लेतीं हैं,
फिर..
हमारी भावनाएं मुदित मन का,
संसार सृजन कर देतीं हैं,
जो जीवान के कैनवास पर,
सिर्फ़ यथार्थ सी नज़र आतीं हैं.....