Saturday, May 14, 2011

अब घर का काम कौन करेगा ? (आँखों देखी )


आज फिर उसके चेहरे पर काले-नीले से दाग थे...गौर से देखने पर गर्दन और हाथों पर भी खरोंच के निशान थे...फिर उसकी ज़रुरत से ज्यादा झुकी हुई गर्दन भी, बहुत कुछ बता रही थी....हाय ! कैसी हो ? आई ऍम फाइन ...लीना ने बिना मेरी तरफ देखे हुए जवाब दिया ...ऐ क्या हुआ तुझे...? मैंने उसे हलके से धकेलते हुए पूछा था.....कुछ नहीं ...कुछ भी तो नहीं, कहते हुए वो और सिमट गयी थी और जाने कैसी तो उसकी आवाज़ हो गयी थी...मैं जानती हूँ, जब भी लीना कहती है, कुछ नहीं हुआ...तब ज़रूर कुछ होता है...और आज का दिन भी अपवाद नहीं था....मैंने भी उसे अब ज्यादा एम्बैरेस नहीं करना चाहा...दो घंटे में लंच होने ही वाला है...फिर बात करुँगी उससे...

लंच के वक्त लीना..हमारे बीच नहीं आई...जाकर कोने में बैठ गयी..मैंने दूर से ही आवाज़ दी ...अरी ओ महारानी..! लंच नहीं करना है क्या...लीना ने बिना मेरी तरफ देखे ही, 'ना' में हाथ हिला दिया था...लेकिन मैं भी कौन सी कम थी...उठ कर चली ही गयी उसके पास...'क्या बात है लीना ? लंच नहीं लाई तो, मेरे साथ कर ले...' 'अरे नहीं थैंक्स ..तू खा, आज मुझे भूख नहीं है...' लीना ने कहा था...अब मुझे झुंझलाहट होने लगी..'थैंक्स की बच्ची...तू अपने को बड़ी होशियार समझती है...तुझे लगता है हम सारे बेवकूफ हैं...तुझपर सुशील ने हाथ उठाया है...सारे बदन पर नील पड़ा हुआ है और तू हम सबको उल्लू बना रही है...तू क्या सोचती है...लोग अंधे हैं...आज फिर कहेगी, गिर गयी थी बाथरूम में...बाथरूम न हुआ अखाड़ा हो गया...तू कुश्ती करती है वहां और गिरती रहती है...देख अगर उसे नहीं रोका तो, एक न एक दिन कोई न कोई कम्प्लेन कर देगा यहाँ से...देख ले, वो दोनों कालियां, सुबह से खुसुर-खुसुर कर रहीं हैं...और अगर तू नहीं चाहती की कोई देखे, ये तेरा काला-पीला चेहरा तो मेक-अप करके आया कर...और कान खोल के सुन ले, मेरे से ये ड्रामेबाजी मत किया कर...भूख नहीं है...!' मैंने उसकी नक़ल की थी ...'चुप-चाप से खाना खा और साफ़-साफ़ बता आज क्या हुआ है...'मेरी सारी भड़ास एक सांस में निकल गई थी....लीना मुझे बड़ी कातर नज़रों से देखने लगी...और फुस-फुसाई....दिल नहीं है मेरा खाने का....मैंने उसे एकदम से घूर कर देखा था...उसने हाथ झट आगे बढ़ा दिया और रोटी तोड़ने लगी ..

याद है मुझे, शायद ५-६ महीने पहले की बात है...मुझे, ऑफिस में थोड़ी देर हो गयी थी, उस दिन... सारे जा चुके  थे...मैं भी अपना काम ख़तम करके, भागना चाहती थी...कंप्यूटर ऑफ करके मैं, दरवाज़े की तरफ डग भरने लगी थी...कोने के cubical के पास से गुजरने लगी कि किसी के सुबकने की आवाज़ आई...उस समय ऑफिस में बिलकुल अकेली थी मैं,  डर के मारे दिल धौंकनी की तरह चलने लगा था..जाने कौन है..? डरते हुए झाँका था ..तो देखा लीना सर झुकाए, सुबक रही थी...'आर यू ओ के ?' मेरे इस सवाल से, वो भी घबरा गयी थी...शायद उसे भी यही अहसास था, कि वो अकेली है ऑफिस में...झट आंसू पोंछ कर उसने कहा था...'ओ..याह....आई ऍम फाइन ..आई ऍम सो सॉरी'...वो ज़रा उलटी-पुलती होने लगी थी...बात बदलते हुए मैंने पूछा ....इंडियन हो ? उसने बड़े जोर से 'हाँ' में सर हिलाया ...'मैं भी....आई ऍम सपना....' कहते हुए मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया था...और उसने हाथ बढाने से पहले, हथेली को अपने कपड़ों में जोर से रगडा था...कहीं उसके आंसू मेरी हथेली पर चिपक ना जाएँ.....यही तो सोचा होगा उसने....'नाईस तो मीट यू..आई ऍम लीना..' जबरदस्ती मुस्कुराते हुए उसने कहा था....'अच्छा लीना अब तुम मेडीटेशन बाद में करना ...यहाँ अकेला रहना ठीक नहीं..चलो अब घर चलते हैं....' मेरी आवाज़ में इतनी अथोरिटी थी,  कि लीना ने फट अपना पर्स उठा लिया था...और हमदोनों दरवाजे की तरफ बढ़ गए थे...

पार्किंग लाट में आकर मैंने देखा, सिर्फ मेरी ही गाड़ी खड़ी थी...पूछने पर उसने बताया वो ड्राईव नहीं करती है...और बस से जाती है...मैंने तपाक से उसे राइड ऑफर कर दिया...रास्ते में ऑफिस की और उसके परिवार की  बातें होती रहीं...लेकिन मैंने एक बार भी उससे नहीं पूछा... वो रो क्यूँ रही थी...

उसने बताया उसकी शादी को १ साल हुए हैं...वो पंजाब से है...भाई-बहनों में सबसे बड़ी है...माँ-बाप ने उसे अकेली ही भेज दिया था, यहाँ शादी करने के लिए...वो शादी का जोड़ा और कुछ नए कपड़े सूटकेस में भर कर, हाथ में अपने होने वाले दुल्हे की तस्वीर और आँखों में रंगीन ख्वाब लिए, अकेली ही आ गयी थी कनाडा...कनाडा आकर उसकी शादी किसी गुरुद्वारे में हो गयी...शादी के दिन, शादी जैसा कुछ भी नहीं था...इस  शादी में शरीक होना भी, सास-ससुर ने ज़रूरी नहीं समझा था...जो इसी शहर में रहते हैं...ससुर तो अपने घर में लुंगी में ही पड़े रहे थे ...शादी के तुरंत बाद ही, गुरुद्वारे से घर आकर उसने खाना बनाया था, क्यूंकि उसके पति को काम पर जाना था....उसका पति टैक्सी चलाता है... और लीना के कहे अनुसार, वो उससे बहुत प्यार करता है...

ऑफिस में हम सबके, ऐसे ही दिन बीतते जा रहे थे...बीच-बीच में लीना के शरीर पर, सुशील का प्यार, काले-नीले रंगों में नज़र आ ही जाता था...पूछने पर लीना पूरे कांफिडेंस से अपना, बाथरूम हादसा सुना देती थी...और मैं उसे बाथरूम में rug डालने के तरीकों पर भाषण दे देती थी...

इस बीच दर्ज़नों बार, उसे अपनी कार में मैं, उसके घर तक राईड दे चुकी थी,  लेकिन वाह री लीना.... क्या मजाल कि एक बार भी वो, मुझसे घर के अन्दर आने को कहे...बड़ी कंजूस थी वो, कभी ये नहीं कहा उसने कि... आज एक कप चाय पी कर जाओ सपना..

मैं ही कौन सी उसे छोड़ने वाली थी...वैसे भी जो मुझे जानते हैं, वो ये भी जानते हैं, जबतक कोई मुझे बिलकुल अनोइड न कर दे, मैं साथ नहीं छोडती...

आज भी मैं लीना की वही पुरानी ऊंट-पटाँग कहानी ..बाथरूम में गिरनेवाली,  झेल जाती शायद...लेकिन पता नहीं क्यों, आज ख़ुद को नहीं रोक पाई मैं...मुझे इस बात पर ज्यादा गुस्सा आ रहा था, कि लीना मुझे महा-ईडियट समझ रही थी...बिफर कर मैंने कहा था ...देख लीना अगर तुझे इसी तरह चोट लगती रही ...तो अब मैं चुप नहीं रहूंगी...कहे देती हूँ...या तो तू सुधर जा या फिर उसे सुधार दे, जिससे तुझे चोट लगती है...ये चोट आखरी होनी चाहिए...लीना भी समझ गयी थी, अब वो ज्यादा नहीं छुपा सकेगी बातें..

जाने क्या हुआ उसके बाद, लीना चार दिन तक, ऑफिस नहीं आई...मैं रोज़ उसका इंतज़ार करती, लेकिन वो नदारद रही...मन में कहीं अपराधबोध भी घर करने लगा था मेरे अन्दर...मुझे क्या ज़रुरत थी, वो सब कहने की ...मियाँ-बीवी की ज़िन्दगी है..मुझे क्या लेना-देना है...मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था..ऐसे ही विचार मेरे ज़हन-ओ-दिल पर हावी होते रहे ....लेकिन वो मेरे दिल के इतने करीब आ गयी थी, कि उसका अपमान, मुझे मेरा अपमान लगता था...

चौथे दिन शाम को, मैं लीना के घर पहुँच गयी...घंटी बजाया तो किसी गोरी ने दरवाजा खोला था...लीना के बारे में पूछने पर उसने, बेसमेंट का दरवाज़ा दिखा दिया था...मैं नीचे चली गयी..लीना बिस्तर पर निढाल पड़ी थी...मुझे देख कर उसके चेहरे पर ऐसे भाव आये, जैसे उसने भूत देख लिया हो...चेहरा एकदम सफ़ेद हो गया था उसका...कहने लगी सपना ..तू क्यूँ आई..? तू मुझे मरवा डालेगी...मैंने उसे आश्वस्त किया, कि ऐसा कुछ नहीं होगा....'तू मेरा घर देखना चाहती थी न....देख ले यहीं रहती हूँ मैं'...मैंने उसे ढाढस बंधाते हुए कहा ....'तो क्या हुआ ...कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा...तेरा पति एक अच्छी सी जगह में घर लेगा और तू आराम से रहेगी...इस जगह से तुझे, वो ले जाएगा'...उसने ना जाने मुझे कैसी नज़र से देखा...मेरा कलेजा मुंह को आ गया...उसने मुझे झकझोरते हुए कहा...'सपना ये मेरे पति का ही घर है...बस मेरी जगह यहाँ है, बेसमेंट में...मुझे बेडरूम में जाने की इजाज़त नहीं है'.....मैं तो जैसे आसमान से गिर गयी...क्याआआअ.?  'हाँ मेरी औकात सिर्फ एक नौकरानी की है...बता मैं तुझे कहाँ लेकर आती सपनाअअअअ' ...वो बोलती ही जा रही थी...अब मेरी आँखों के सामने उस गोरी का चेहरा घूम गया था....मैंने तुरंत पूछा...'वो गोरी कौन है...?' 'वही तो है सपना इस घर की मालकिन, मैं तो बस नौकरानी हूँ...खाना बनाना, घर साफ़ करना, घास काटना...ये काम, वो काम, सब कुछ  करना..यहाँ तक कि अपने खर्चे का भी इंतज़ाम करना....ये सारी बातें मैं झेल जाती हूँ.....लेकिन जब मुझे वो कपड़े धोने होते हैं...जिनमें उनके सानिध्य के चिन्ह होते हैं...सच कहती हूँ....मैं बिखर जाती हूँ...नहीं झेल पाती'...ये कहते हुए..लीना की छाती तो जैसे फट ही गयी थी शायद...उसका बदन इतने जोर से हिला था, कि शायद भगवान् भी उठ बैठे होंगे...

मैंने लीना को अपनी बाहों में भर लिया था...थोड़ी देर में वो शांत हो गयी थी...अब हमदोनों मिल कर उसका सूटकेस तैयार कर रहे थे...मैंने लीना को सबसे अच्छा सूट पहनने को कहा था ...बेसमेंट के, छोटे से आईने के सामने बैठी लीना का, मैं मेक-अप कर रही थी ...उसके चेहरे के सारे दाग फाउनडेशन के नीचे अब, दब गए थे...मेक-अप पूरा होने के बाद जो लीना नज़र आई..उसे देख कर मेरी आँखें चमक गयीं...इतनी प्यारी इतनी खूबसूरत कि बस पूछिए मत..

हम दोनों ने एक-एक सूटकेस उठा लिया था...हम जैसे ही दरवाज़े के बाहर आये, एक टैक्सी आकर रुकी थी, ड्राईव-वे पर...'ओये ! ये कोण है ? ओये कित्थे जा रही है ...? ऐसा ही कुछ चीख़ रहा था वो ...शायद उसे ये फ़िक्र खाए जा रही थी, अब घर का काम कौन करेगा ...वो गोरी तो करने से रही ?
हम दोनों के कदम, मेरी कार की तरफ बढ़ते जा रहे थे.....पीछे से लगातार चिल्लाने की आवाजें आ रहीं थीं...मैंने कनखियों से लीना को देखा ..उसके चेहरे पर 'Who Cares....!!' के भाव थे...आज, वो मुझे ज़रा लम्बी लग रही थी....शायद आत्मविश्वास इंसान का कद बढ़ा देता है....

हाँ नहीं तो...!

14 comments:

  1. आत्मविश्वास इंसान का कद बढ़ा देता है....
    सो तो खैर है ही....

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  2. ऐसी घटनाओं से निजात पाने के लिये "who cares" का ही भाव जाग्रत करना पड़ेगा ।

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  3. शायद आत्मविश्वास इंसान का कद बढ़ा देता है....
    saty pratishat saty , sarthak post abhar

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  4. एक बार मन में सोच लें कि जो होता है हो, जीवन अपना जीना है तो एक शान्ति सा अनुभव आ जाता है।

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी आज के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  6. आत्मविश्वस जीवन में बहुत कुछ नया ला देता है जीवन को फिर से जीवन बना देता है |

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  7. बेहद मर्मस्पर्शी ......
    हर मर्ज़ की एक ही दवा है ’आत्मविश्वास’...इसको आपने प्रतिष्ठित कर दिया .....आभार !

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  8. आत्मविश्वास जीवन में कैटालिस्ट की तरह काम करता है और उससे लड़ना आसान होजाता है पोस्ट अच्छी है बधाई

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  9. सुन्दर कथा...जल्दी पूरी कहानी नहीं पढ़ पता था परन्तु निरंतरता इतनी थी की बिना पढ़े नहीं रह सका..\
    बहुत सुन्दर..

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  10. post to achchhi hai hi..uske liye badhai bhi..

    par...










    aapne jo bhi kiyaa mam aDa..
    uske liye aapko sau sau baar naman hai.......

    har koi aisaa nahin kar saktaa...

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  11. आत्मविश्वास सफलता की कुंजी होती है.संदेशपरक अच्छी कहानी .

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  12. लीना से वो डायलाग बुलवाना था जी, "चुटकी भर सिंदूर की कीमत, तुम क्या जानो, सुशील":)) मंगलसूत्र और सिंदूर की कीमत बहुत बार चुकाई ही नहीं जाती।

    अंत सुखद है इसलिये मजाक किया है। जबरन बोझ ढोते लोगों का आत्मविश्वास बाकी नहीं रहता और हर कोई इतनी खुशनसीब भी नहीं होती कि उसे सपना जैसी उत्प्रेरक मिल जायें।

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  13. काश हर ऐसी कहानी/ सच्चाई का ऐसा ही अंत हो..

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  14. आत्मविश्वास इंसान का कद बढ़ा देता है ...
    सही बात है जी ...आज नाप कर देखते हैं कितना बढ़ा...
    घरों को बचाए रखने के लिए सामंजस्य अलग बात है , मगर अत्याचार बर्दाश्त करना अनुचित है ...कहानी में अच्छा सन्देश है !

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