Friday, April 30, 2010

है न गज़ब की बात ...!!



उसका घर बदल गया है,
दीवार पर कैलेण्डर बदल गया है,
बिस्तर की चादर बदल गई है,
मंदिर में ठाकुर बदल गए हैं,
कमरे का कलर बदल गया है,
बदल गए हैं टूथ पेस्ट, साबुन, तेल, कमीज़; 
तीन साल में कार बदली, पांच साल में बीवी,
सोच उसकी बदल गई,
अब, सिर भी बदल गया हैजब से पैदा हुआ है;
हर दिन वो, थोड़ा सा बदल जाता है
पर इतनी बदलियों के बाद भी
बदला नज़र नहीं आता है...!!
है न गज़ब की बात ...!!   

Thursday, April 29, 2010

आख़िर, जंगल का भी अपना, क़ानून तो होता ही है....!!



सीधी सच्ची बातें, 
जंगल जैसे लोग
झेल नहीं पाते,
घबराते हैं
कहीं चीड़ों के झुरमुट में
चाँदनी न बिखर जाए,
और वो साँप सी रेंगती 
झूठी ईमानदारी की पटरियाँ,
जिनपर
काहिली के मंसूबे
सफ़र करते हैं,
अपने मकसद और मुक़ाम पर
पहुँचने से पहले
पकड़े जाएँ,
इसलिए, 
सबकी नज़रें बचाकर 
लीपते हैं दंभ से,
ज्ञान की ज़मीन 
और लगाते हैं चाटुकारिता 
के रंग-ओ-रोगन,
पर, उनकी अपनी ही 
छिद्रान्वेषी कोशिशें
उसे थोथा कर देतीं हैं  
और तब ग़ुलाम 
हुई कुंठाएं,
चेहरे बदल-बदल कर
मोहने की कोशिश में 
लग जातीं हैं,
टिके रहने के लिए... 
अब, वर्चस्व तो बचाना है न ! 
आख़िर,
जंगल का भी अपना, क़ानून तो होता ही है....!!


Wednesday, April 28, 2010

सच्च में, एक नंबर का गधा है मृगांक.....!!!!


रात ११ बजे उसकी flight पहुंची..मैं एयर पोर्ट पर हाज़िर थी...international arrival पर नज़रें टिकाये हुए...दरवाज़ा जैसे ही खुलता मन में आस दौड़ जाती ये वही होगा....ख़ैर, आखिर वो आ ही गया....मेरा बेटा मृगांक, दुनिया में सबसे खूबसूरत, वो चलता हुआ आ रहा था लेकिन ये क्या...ये अजीब सा क्यूँ चल रहा है...लंगड़ाता हुआ,  मेरा कलेजा मुँह को आगया, मैं हैरानी से उसे देखती रही और हाथ घूमा घूमा कर इशारे से पूछती रही ..क्या हुआ ...क्या हुआ ? लेकिन वो बस हँसता हुआ बिना कुछ बोले आया मेरे पास...मेरे पाँव छूवे और लिपट गया...I love you mom and I miss you so much...कानों में फुसफुसा गया...उसके बाद मैं भूल गई, क्या पूछ रही थी...

ख़ैर सामान के साथ एयर पोर्ट से बाहर आये हम माँ-बेटे , संतोष जी गाड़ी के पास ही थे काफी जोश से बाप-बेटे मिले और पिता ने भी पूछ ही लिया क्या हुआ है, लंगड़ा क्यूँ रहे हो..? वो कुछ नहीं जरा चोट लग गई थी...., कैसे ? बताता हूँ ..कहते कहते सारा सामान हमने लादा गाड़ी में और अन्दर बैठ गए....अब तक भी उसने बताया नहीं था, बैठने के बाद मैंने कहा अब बताओ क्या हुआ है ? कहने लगा मम्मी आपको तो पता ही होगा क्या हुआ है ? मैंने कहा नहीं बाबा हमको कहाँ मालूम है..? अरे ! कैसे नहीं ...? आपने उसी दिन मुझे फ़ोन किया था... आप बहुत घबराई हुई थीं फिर आपने पूछा था तुम ठीक तो हो न ? आप ने कहा था कि मेरा मन बहुत घबरा रहा है.....और मैं सिर्फ़,  ओह माई गोड  मम्मी..ओह माई गोड मम्मी कहता रह गया था.....हाँ हाँ मुझे याद है लेकिन तुमने कुछ बताया तो नहीं था मुझे उसे दिन न ....अरे ! मम्मी आप  बेकार में परेशान होती इसलिए नहीं बताया....लेकिन हुआ क्या ये तो बताओ....तब जाकर उसने बताया...

मैं ३ अप्रैल के दिन,  Sea Beach पर दोस्तों के साथ धामा चौकड़ी मचा रहा था..भाग दौड़ रहा था रेत पर, और एक फूटी हुई बियर की बोतल का काँच तलवे में अन्दर तक घुस गया....ज़ख्म बड़ा था, लेकिन इतना खून बह रहा था कि दिखाई ही नहीं दे रहा था और पता ही नहीं चल रहा था कितना बड़ा कट है, मेरे  दोस्त बहुत परेशान हो गए...किसी ने अपनी शर्ट उतारी और बाँध दिया कस के ...लेकिन शर्ट खून से सराबोर हो गई...खून था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था...यह देख कर जल्दी से मुझे  हॉस्पिटल जाना पड़ा.....५ टाँके लगे...टाँके लगवा कर मैं बैसाखी के सहारे अपने रूम में आया ही था कि आपका फ़ोन आ गया था ...और आप बहुत घबराई हुईं थीं..आपने कहा तुम ठीक तो हो , मैं हैरान हो गया था आपके सवाल से....मुझे मालूम था कि आपको किसी ने भी ख़बर नहीं की थी ....और तब मैं और ज्यादा हैरान हो गया जब आपने कहा कि आपने घर में मेरी आवाज़ सुनी थी कि मैं चिल्ला रहा था....वो तो बहुत स्केरी था मम्मी.... इसीलिए तो मैं कह रहा हूँ कि आपको तो पता ही होगा...

ये तो मृगांक के साथ हुआ था .....

अब सुनिए मेरे साथ क्या हुआ.....

उस दिन शनिवार था शायद ३ अप्रैल २०१० ....सब देर से उठे थे घर में और सबने देर से नाश्ता किया था...उस वक्त मैं किचन में थी..दोपहर को खाना बनाने से पहले मैं नाश्ते के बर्तन साफ़ कर रही थी...मेरी पीठ की तरफ laundary room का दरवाज़ा था...मैं sink में बर्तन धो रही थी , अचानक मुझे लगा जैसे मृगांक दरवाज़े से अन्दर आ रहा है और चिल्ला कर  मम्मी मम्मी कह रहा है....हालाँकि पानी का नल चल रहा था और बर्तन की भी आवाज़ थी ...फिर भी मैंने मृगांक की  आवाज़ बिल्कुल साफ़-साफ़ सुनी थी, मैंने जल्दी से पलट कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था....अब मैं बहुत घबड़ा  गयी...उतनी ही देर में मन में ना जाने कितनी अशुभ बातें आने लगीं....मैं इतनी घबराई  कि मेरे हाथ साबुन से भरे थे उनको भी धोने में समय नहीं गंवाना चाहती थी , मैंने मयंक को जो कि घर में ही था आवाज़ देनी शुरू कर दी...मैं इतने जोर से चिल्लाई कि वो भागता हुआ नीचे आया ...मयंक को मैंने जल्दी से मृगांक को फ़ोन लगाने को कहा...क्या हुआ मम्मी आप इतना क्यूँ  घबरा रही हैं...? मैंने कहा अभी अभी मैंने निकी (मृगांक) की आवाज़ सुनी है...ज़रूर कोई बात है ...बस तुम फ़ोन लगाओ,  उसने फ़ोन लगा दिया....उधर से मृगांक ने फ़ोन उठाया ...और वो इसी फ़ोन की बात कर रहा था....मेरे बच्चे को कितनी तकलीफ हुई होगी सोच कर ही मन कैसा हो जाता है,  वो अकेला था, ये अलग बात है कि उसके दोस्त उसके प्रोफ़ेसर सभी थे उसके साथ फिर भी उसने मुझे कितना याद किया होगा ....बहुत याद किया होगा ...तभी तो उसकी आवाज़ मुझ तक आ गई .....शायद किसी को यकीन न हो लेकिन ऐसा ही हुआ है..बस.....

कल रात से मैं इस घटना के बारे में सोच रही हूँ  ...क्या सचमुच हम माएं अपने बच्चों की आवाज़ सुन लेती हैं चाहे वो कहीं भी हों....मैंने तो सुनी थी....लेकिन ये बच्चे हमारे भी बाप हैं ..हम परेशान न हों इसलिए बताया नहीं....अपने भाई मयंक को बता दिया और उसका भाई रोज उसकी खोज ख़बर लेता रहा लेकिन मुझे नहीं बताया....मुझे तब ही बताया जब वो मेरे सामने आया....अभी भी गुस्सा हूँ मैं उससे....सच्च में एक नंबर का गधा है मृगांक.....!!!!

Tuesday, April 27, 2010

मेरे ख़ूने जिगर से ही, सही इक जाम हो जाए ......


जब तक तुम मिलो हमसे, न उम्र की शाम हो जाए
ज़िक्र तेरा करूँ ख़ुद से, और चर्चा आम हो जाए

तुझे मिलने की ख्वाहिश और तमन्ना दिल पे तारी है
ख़्वाबों और हक़ीकत में, न क़त्ले आम हो जाए

दहाने ज़ख्म के दिल के, ज़िन्दगी सोग करती है 
हुनर ये ज़िन्दगी का है, पर दिल गुलफाम हो जाए

वो बारिश जो कभी खुल कर, खुली छत पर बरसती है 
मेरे कमरे में भी बरसे तो मेरा काम हो जाए 

करिश्मा ग़र कोई ऐसा, मेरा क़ातिल ही कर जाए 
मेरे ख़ूने जिगर से ही, सही इक जाम हो जाए  

Monday, April 26, 2010

एक नई शुरुआत हो......


बस !!
आज का ही दिन है  
प्यार का वो एक दिन
कल की क्या ख़बर,
क्या जाने क्या बात हो
कुछ आसान हो ये सफ़र 
रास्ते में रात हो 
हो ख़त्म नफ़रत का ज़हर
न धोखा न घात हो 
असलों से भरा हो घर
बचपन न बर्बाद हो
करो उजागर, 
कम इल्मी और जहालत 
आओ मिलकर करें फ़िक्र 
एक नई शुरुआत हो......


चित्र गूगल के सौजन्य से...

Sunday, April 25, 2010

हेल्प प्लीज ...!!

एक मिनी पोस्ट...
बेनामियों, अनामियों, फर्जी नामी को पहचानने का एक उपाय यह भी है....
हम सभी अपने ब्लोग्स WORDPRESS में बना लें ...जिससे हर comment के साथ हमें टिप्पणीकर्ता के computer का IP address , स्थान इत्यादि की जानकारी मिलेगी और हम फर्जी नाम के IP address से असली नाम IP address की तुलना करके पता कर सकेंगे...कि ये फर्जी नामी कौन है....??

मुझे ठीक से नहीं मालूम है, बस ये एक सोच मेरे मन में आया तो कह दिया..अगर आपलोग कुछ और उपाय बता सकते हैं...तो बताइए, जिसे अपनाकर हम ख़ुद कुछ कर सकते हैं (फर्जी नामी टिप्पणी नहीं देना सर्वोत्कृष्ट उपाय है)....

क्योंकि पाबला जी, अक्सर सबकी मदद करते हैं, मेरा प्रश्न उनके लिए भी है .... क्या मैं ठीक सोच रही हूँ ?? अगर हाँ तो मैं आपसे अनुरोध करती हूँ ...एक पोस्ट लिख कर आप सबकी मदद कर दीजिये ...कैसे हमलोग अपने-अपने ब्लॉग का,  आसानी से यह Blogspot , blogger से wordpress में conversion कर सकते हैं....
आपका आभार....
'अदा' 


कल होंगे न होंगे दुनिया में जायेंगे कहाँ मालूम नहीं ...


हम उसकी तलब में निकले हैं, मिलेगा कहाँ मालूम नहीं
मंदिर भी गए मस्जिद भी गए, ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं

बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
तुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं

ख़ुदा के ठेकेदारों सुनो, भगवान् के पहरेदारों सुनो
मोहब्बत की बोली रब की जुबाँ, तुमको ये जुबाँ मालूम नहीं

तुम पर वो बहारें बरसतीं रहीं, तुम अपने हाथों उजड़ते रहे 
क्यों दीदें फटीं हैरानी से, कब आई खिंजां मालूम नहीं

शिद्दत-ए-ग़म से घबरा कर, चुप-चाप यहीं हम बैठ गये
कब दिल के फफोले फूट गए, कब दे दी सदा मालूम नहीं  

हम क्या हैं, क्यों हैं, क्या जाने, दिल चाहे वही फ़रमाते हैं
कल होंगे, न होंगे दुनिया में, जायेंगे कहाँ मालूम नहीं

और अब मयंक की चित्रकारी .....
 

Saturday, April 24, 2010

एक चिट्ठी आपके नाम...


आदरणीय ब्लॉग जगत,
इधर लगातार कई दिनों से ब्लॉग जगत में सौहार्द बनाये रखने के प्रयास में हम सभी जुटे हुए हैं....ख़ुशी हुई कि कमोबेश हम में से अधिकांश एक जैसा ही सोचते हैं....ब्लॉग्गिंग हम सबका एक शौक़ है ...जो थोडा बहुत समय हमारे पास बचता है जीवन की भाग-दौड़ के बीच हम उसे सकारात्मक रूप से इस्तेमाल करना चाहते हैं...कुछ अपनी कहना चाहते हैं कुछ औरों की सुनना चाहते हैं....अफ़सोस तब होता है जब कुछ शरारती या उन्मादियों के कारण सभी को परेशानी होती है, न सिर्फ हमारा इतना कीमती समय बेकार की बातों में जाया होता है और बल्कि मानसिक तनाव भी हम मोल ले लेते हैं... आखिर क्यूँ ...??

जीवन में प्यार-मोहब्बत के लिए ही समय कम है तो फिर लड़ने के लिए वक्त कहाँ है...

ब्लॉग जगत में सौहार्द बनाये रखने के प्रयास हमेशा से होते रहे हैं और अभी भी बहुत से अच्छे और अनुभवी लोग जुटे हुए हैं...और यकीन कीजिये सुधार अभी ही हो सकता है बाद में नहीं...ब्लॉग जगत का एक-एक ब्लॉगर दिल से चाहता है, शांति और प्रेम से रहना

मैंने जो भी लिखा, सभी के लिए लिखा था, किसी एक धर्म विशेष के लिए ये सन्देश बिल्कुल नहीं था...लेकिन हो सकता है ये एकतरफा लगा होगा, क्यूंकि बात की शुरुआत व्यक्ति विशेष से हुई थी... 
मैंने जो भी लिखा एक विश्वास से लिखा है और उस पर कायम हूँ....सचमुच शांति बनाये रखने के लिए हर प्रयत्न करने की इच्छा भी है और कोशिश भी...

सभी इस बात से परिचित होंगे ही कि कोर्ट-कचहरी का मामला बहुत दुरूह होता है....हर हिसाब से...चाहे वो पैसा के मामले में हो या अमन-चैन की बात हो....इस पचड़े में पड़ना खुद के साथ-साथ अपनों को भी तकलीफ देने वाली बात होती है..इसलिए ऐसा कुछ भी न करें कि कल को पछताना पड़े...

पिछली पोस्ट्स में बहुत सारे कमेन्ट आये थे...ज्यादातर इस प्रयास के साथ हैं, कुछ confused और थोड़े बहुत नाखुश...सबको ख़ुश नहीं किया जा सकता है लेकिन जो सही है वो काम किया जा सकता है... 
आज कुछ कमेंट्स यहाँ डाल रही हूँ....

Mansoor Ali said...
क्यों?

ब्लॉगर भी ज़हर फैला रहा है!
जो बोया है वो काटा जा रहा है.

धरम-मज़हब का धारण नाम करके ,
भले लोगों को क्यों भरमा रहा है.

अदावत, दुश्मनी माज़ी की बाते,
इसे फिर आज क्यों दोहरा रहा है.

सहिष्णु बन भलाई है इसी में,
क्रोधी ख़ुद को ही झुलसा रहा है.

हिफाज़त कर वतन की ख़ैर इसमें,
तू बन के बम, क्यों फूटा जा रहा है.

न भगवा ही बुरा,न सब्ज़-ओ-अहमर*,
ये रंगों में क्यों बाँटा जा रहा है.

बड़ा अल्लाह , कहे भगवान्, कोई;
क्यूँ इक को दो बनाया जा रहा है.

मिले तो दिल, खिले तो फूल जैसे,
मैरा तो बस यही अरमाँ रहा है.

*अहमर=लाल
-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
April 21, 2010 8:12 पम

'अदा' said...आदरणीय मंसूर अली साहब,
आपके जैसे लोगों की बहुत कमी है...आपकी पंक्तियाँ बिल्कुल सही सन्देश दे रही हैं...आपका आशीर्वाद इस ब्लॉग जगत के लिए बहुत ज़रूरी है ...हम सभी हृदय से आपके आभारी हैं....

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said... अदा जी,
आप की सभी बातों और बिन्दुओं से सहमत हूँ। हिन्दी ब्लागीरी को सामुहिक रूप से मेरी सेवाओं की आवश्यकता हो तो मैं सहर्ष उपलब्ध हूँ। 



'अदा' said... दिनेश जी,
आप नहीं जानते आपने मुझे कितनी बड़ी मुश्किल से निकाल दिया...मैं कल से आपसे बात करना चाहती थी लेकिन संकोचवश नहीं कर पायी...
अब कोई नहीं रोक सकता हमलोगों को...आप जब साथ हैं तो फिर क्या बात है...
आपका बहुत आभार..
हाँ नहीं तो...!!

Akhtar Khan Akela said... aadrniy blogvaani ki grimaa ke liyen chintaa chod den bs ab qaanoon ki baat kren kendr or raajy srkaaron pr apnaa shiknjaa ksen ke voh pulis kaa ek alg vibhaag is smbndh men bnaaye or khud dhund kr yaa shikaayt milne pr ese logon ko nyaayaalyon men chaalaan pesh kr dndit krvaae. akhtar khan akela kota rajasthan 

'अदा' said...अख्तर साहब, आप भी वकील हैं और आपने सहायता का हाथ बढ़ाया है...बहुत ख़ुशी हुई है...आपलोगों का साथ रहा तो सब कुछ ठीक हो जाएगा ...आपको देख कर विशेष रूप से हौसला बढ़ा है...आपका आभार..

यह भी सूचित करना था कि कुछ और भी कानूनदां हमारा साथ देने ले लिए स्वेच्छा से तैयार हो गए हैं...

वैसे भी जब इन्टरनेट की बात आती है तो कानून का दायरा भी बढ़ जाता है...बात सिर्फ़ भारत की नहीं रह जाती है...भारत में शायद कुछ भी कह जाना या लिख जाना उतना मायने नहीं रखता लेकिन...विदेशों में ऐसा नहीं है....आप कुछ कह-लिख तो सकते हैं लेकिन अधिकारियों की नज़रों से बच नहीं सकते ...अगर आप USA या Canada में रहते हैं तो आपको बता दें की यहाँ इन देशों में  Anti-Terrorism Law नाम का नया कानून पास हो चुका है...जिसके अंतर्गत Racial Profiling आता है...इस कानून के अनुसार ज़रुरत पड़े तो Authorities बेधड़क आपके घर घुस जायेंगे और आपसे कुछ भी पूछ सकते हैं और आपको जवाब देने के लिए तैयार रहना  होगा....यहाँ तक कि यहाँ की पुलिस को स्पेशल पावर है बिना कोई कारण बताये वो आपको  शक़ के बिना पर गिरफ्तार कर सकती है...जेल में डाल सकती है और आपके घर वालों को पता भी नहीं चलेगा की आप कहाँ गए...और वो कारण आपका ब्लॉग भी हो सकता है..जहाँ आपने भड़काऊ बातें लिखी हैं...

यहाँ मैं एक धर्म विशेष का उदाहरण देना चाहूंगी....क्योंकि इस समय निशाने पर हर जगह वही है....
शाहरुख़ खान का प्रसंग एक अच्छा उदाहरण हो सकता है....अब आप समझ सकते हैं जब शाहरुख़ खान जैसी शख्शियत को नहीं बक्शा जाता है तो हम आप क्या चीज़ हैं....इसलिए सम्हल कर रहना ज़रूरी है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बेजा फायदा न उठाया जाय, नहीं तो ख्वामखाह विदेशी सिक्यूरिटी संस्थाएं  और अधिकारियों की नज़र में आ सकते हैं ...Racial Profiling के तहत वो आपका नाम, पता, तस्वीर कद-काठी कलमबंद कर सकते हैं, फिर अगर कभी आप या आपके बच्चे देश से बाहर आना चाहें तो ..और अगर आपका नाम यहाँ की लिस्ट में निकल आया तो आप या आपके सम्बन्धी बिना कसूर परेशानी में पड़ सकते हैं....इसलिए कृपा करके अपने को सुरक्षित रखिये...आपका सबसे पहला धर्म अपने और अपने परिवार के प्रति है..इसलिए मैं फिर कहती हूँ अपने लेखन के कारण किसी भी मुसीबत में न पड़े जिससे बाहर निकलना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाए....

मेरा काम है आगाह करना, मैं ऐसी ही सरकारी संस्था में काम करती हूँ, और बहुत अच्छी तरह जानती हूँ कि लोगों की व्यक्तिगत जानकारियाँ इन्टरनेट से ही उठाई जाती हैं ..अब ज़िन्दगी उतनी आसान नहीं है जितनी लगती है....ऐसे हादसे हमारे अपने लोगों के साथ भी हो चुके हैं....हमारे कितने सरदार दोस्तों को पगड़ी में समानता की वजह से पकड़ा गया...ये अलग बात है कि वो सभी रिहा हुए ...लेकिन परेशानी तो हुई है...

तो ये थे कुछ कमेंट्स ...और मेरी कुछ बातें...जिसे मैं आपलोगों के समक्ष लेकर आई...आशा ही नहीं विश्वास है ...आपलोग इन बातों को गंभीरता से लेंगे...और तदानुसार काम करेंगे...
ईश्वर की शांति आपके साथ हो...!!
धन्यवाद...
आभार...
'अदा'

Friday, April 23, 2010

टाँग अड़ाने की अदा ....

आज एक पुरानी पोस्ट डाल रही हूँ...उम्मीद आपको पसंद आएगी...



कल से एक एक कहावत है या मुहावरा मेरे दिमाग में उमड़ घुमड़ रहा है....'टाँग अड़ाना' ..सुनने  में कितना आसान लगता है...सोचो तो एक दृश्य सामने आता है ...किसी ने अपनी टाँग आड़ी कर के लगा दी...अब ऐसा है कि किसी की टाँग अगर हमारे सामने आ जाए तो ज़ाहिर सी बात है ..हमारी गति रुक जायेगी.....अब आप कल्पना करके देखिये ज़रा ...आपने अपनी टाँग किसी के  सामने कर तो उसकी तो  ऐसी की तैसी हो जायेगी ना....!!

ज़रा एक बार फिर इसे सोचें ...आपके दिमाग में एक शारीरिक भंगिमा उभर आएगी...एक बिम्ब बनेगा.....इसे सोचने से दृश्य सामने आया कि आपने अपनी टाँग किसी के सामने कर दी...लेकिन क्या सचमुच ऐसा है...दृश्य और अर्थ  में काफी फर्क  है...कोई तालमेल नहीं....यह सिर्फ सुनने में ही आसान लगेगा लेकिन इसका अर्थ बहुत गहन है...इसी  से मिलता जुलता  एक और दृश्य अभी अभी दृष्टिगत हुआ है...लंगी मारना....इसकी अगर विवेचना करें तो जो दृश्य सामने आता है...उसमें एक ने दूसरे  की टाँग में अपनी टाँग  फ़सां दी और दूसरा व्यक्ति चारों खाने चित्त...अब ज़रा दोनों कहावतों पर गौर करें तो पायेंगे कि...टाँग अड़ाना एक स्थिर प्रक्रिया  है जबकि लंगी मारना एक गतिमान प्रक्रिया...

अब इस महाशास्त्र की विवेचना को जरा आगे लिए चलते  हैं और सोचते हैं कि आखिर इस 'टाँग अड़ाने'  का सही अर्थ क्या  है...तो इसका सार्वजनिक अर्थ है... अनावश्यक हस्तक्षेप करना...आप चाहे न चाहें और ज़रुरत हो कि न हो....आपने अपनी टाँग अड़ा दी.....यह  प्रक्रिया व्यक्ति विशेष की पसंद-नापसंद पर भी निर्भर है...अब कोई ज़रूरी नहीं कि आप जिस विषय को 'टाँग अडाऊ' सोच रहे हैं ..मैं भी उसे वैसा ही सोचूं...यह पूरी तरह टाँग अड़ाने वाले की इच्छा, सुविधा और ज़रुरत पर निर्भर करता है....
कोई ज़रूरी नहीं है कि... यह एक ज़रुरत हो, यह एक शौक़ भी हो सकता है...या फिर आदत या फिर बिमारी...हाँ शौक़ जब हद से बढ़ जाए तो यह एक बीमारी का रूप ले लेता है...और तब बिना टाँग अड़ाए... उस व्यक्ति को आराम ही नहीं मिल पाता है....

कुछ लोग तो टाँग अड़ाना अपनी राष्ट्रीय, या सामाजिक जिम्मेवारी भी समझते हैं...बल्कि इस काम के लिए वो अपना काम-धाम छोड़ कर पूरी तन्मयता के साथ 'टाँग अड़ाने' की नैतिक जिम्मेवारी निभाते हैं...

टाँग अड़ाने की भी अपनी एक शैली  है...कुछ तो सीधा अपनी टाँग अड़ा देते हैं और फिर उनकी ख़ुद की टाँग अथवा  शरीर के अन्य अंगों पर भी मुसीबत आ जाती है....इसलिए इस प्रक्रिया में सावधानी की बहुत आवश्यकता होती है....
कुछ लंगी मारने में विश्वास करते हैं...लंगी मारना ज्यादा दिमागी प्रक्रिया है ...इसकी सफलता के चांस भी बहुत ज्यादा होते हैं....लंगी मारना एक स्वार्थ परक प्रक्रिया है....और बहुत कम लोग लंगी मारने  में पारंगत होते हैं....लेकिन टाँग अड़ाना एक कलात्मक प्रक्रिया है...और इसमें अधिक कलाबाजी देखने को मिलती है...

टाँग अड़ाना विशुद्ध मानवीय वृति है ...और जैसा मैंने बताया ...यह एक कला है....और अधिकांश इस कला के कलाबाज़....जब यह अपनी सीमा पार कर जाए तो लोग यही कहते हैं ...'इसे तो टाँग अड़ाने की बीमारी है' ...अब  ज़रा  सोचिये.... आप क्या है  ??? कलाबाज़ या बीमार ????

Thursday, April 22, 2010

कल ब्लॉग वाणी से लगभग एक घंटे मेरी बात-चीत हुई है...

कल ब्लॉग वाणी से लगभग एक घंटे फ़ोन से मेरी  बात-चीत हुई है...ब्लॉग जगत की समस्या को धैर्य पूर्वक सुना गया और सहयोग का पूरा आश्वासन मिला है....अब किसी भी तरह की कोई बेहूदगी बर्दाश्त नहीं की जायेगी...सभी ब्लोग्गेर्स से अनुरोध है कृपया निम्नलिखित बातों पर गौर करें:
  • किसी भी तरह के  व्यक्तिगत आक्षेप से बचें ...बर्दाश्त नहीं किया जाएगा...
  • संवेदनशील विषयों पर जैसे धर्म, नारी, पुरुष इत्यादि पर बात-चीत गरिमा के अन्दर रह कर की जाए...अगर ऐसा नहीं हुआ..तो class action lawsuits के लिए तैयार हो जाइए...
  • कोई धर्म-बड़ा छोटा नहीं है, एक धर्म को दूसरे धर्म से ऊँचा दिखाने की कोशिश में किसी की भी भावनाओं से अगर खेला गया तो class action lawsuits किया जाएगा
  • किसी ने भी फर्जी ID का प्रयोग कर के किसी की भी भावनाओं से खिलवाड़ करने की कोशिश की तो, ब्लॉग वाणी ने मुझसे वादा किया है कि वो उस नाम का पर्दा-फाश करेंगे....अगर किसी को कहीं भी ऐसी बात नज़र आती हैं...तुरंत मुझे सूचित कीजिये kavya.manjusha@gmail.com पर जल्द से जल्द....उस व्यक्ति का नाम, ब्लॉग का पता तस्वीर सहित छापा जाएगा....एक बात और स्पष्ट करना है फर्जी ID से कमेन्ट करना साइबर क्राइम के तहत आता है , और इसकी सज़ा भी है,  पकडे जाने पर सारी जानकारी अधिकारियों को दी जायेगी....इस लिए सोच समझ कर कदम उठाया जाए..
जहाँ तक हो सके आपसी प्रेम बनाये रखिये, एक दूसरे कि संस्कृतियों को हम और अच्छी तरह समझने की कोशिश करें, एक दूसरे के धर्मों का आदर करें, उनकी अच्छाइयों को अपनाने की कोशिश करें और अपनी बुराइयों को सुधारने की....
विश्वास कीजिये हम एक स्वस्थ समाज की रचना कर सकते हैं....यह बिल्कुल संभव है...बस ज़रुरत है थोड़ी सहन-शक्ति, धैर्य और क्षमा की....
आज और अभी से शुरू कीजिये ...सब ठीक हो जाएगा...
सच में....

Wednesday, April 21, 2010

या तो ब्लॉग वाणी इनपर कार्यवाही करे नहीं तो ब्लॉग वाणी का ही बहिष्कार होना चाहिए....

किसी महिला की बेईज्ज़ती करना, किसी धर्म की खिल्ली उड़ाना, बिना बात के ब्लॉग जगत में तहलका मचाना, ऐसे जितने भी ब्लॉग है उनपर अंकुश लगना बहुत ज़रूरी है.....

या तो ब्लॉग वाणी इनपर कार्यवाही करे नहीं तो ब्लॉग वाणी का ही बहिष्कार होना चाहिए....आखिर क्या वजह है कि ब्लॉग वाणी इन ब्लॉग पर प्रतिबन्ध नहीं लगा रही है....क्या तकनीकि तौर पर वो कुछ नहीं कर पा रहे हैं या फिर उनको इससे आर्थिक नुक्सान पहुँच रहा है या फिर वो करना ही नहीं चाहते हैं....
हम कारण जानना चाहते हैं....

आइये ब्लोग्वाणी  और चिटठा जगत को मिलकर एक विज्ञप्ति दी जाए कि इस तरह की बात करने वाले ब्लॉग को अविलम्ब ख़ारिज किया जाए ... 
सबलोग मिलकर करते हैं आह्वान ...आवाज़ बुलंद हो ...ब्लोगवाणी ऐसे ब्लॉग को तुरंत हटाये ...और अगर वो ऐसा नहीं करते हैं ...तो ब्लोग्वाणी का ही बहिष्कार होना चाहिए.....
अब ये मुहीम शुरू होनी ही चाहिए....
 

इस पोस्ट पर अपना एतराज़ दर्ज कीजिये....अब इस तरह की फ़ालतू बातें बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं की जायेगी...चाहे कुछ भी हो जाए.....



काठ की हांडी कभी चढ़ती दोबारा नहीं...



तेरी सूरत न दिखे
वो मेरा नज़ारा नहीं

काम के बिना यहाँ
कोई गुज़ारा नहीं

तू दूर खड़ा देखता
ये तो सहारा नहीं

हम तेरे हो गए हैं
क्यूँ तू हमारा नहीं

बात दिल की मान लें 
इतने नाकारा नहीं

मौत से अब खौफ क्या
जब दूसरा चारा नहीं

काठ की हांडी कभी
चढ़ती दोबारा नहीं

फिरदौस ने कहा की उसकी फर्जी ID बनाई गयी है कमेन्ट किया गया है ....
उस ID को जब क्लिक किया जाता है तो फिरदौस  का ब्लॉग खुलता है ...तो हम बता दें की ये कैसे बनता है...
बहुत आसन है....टिप्पणी वाले  पेज में जाइए वहां देखिये
 

Name /URL
Name की जगह में उस इंसान का नाम डालिए जिसको आप बदनाम करना चाहते हैं और URL की जगह  उसी इंसान के ब्लॉग का URL और फिर जो जी चाहे आप टिप्पणी ख़ुशी ख़ुशी कर दीजिये....हो गयी जी आपकी मनपसंद टिप्पणी उस इंसान के नाम की ....क्योंकि अब जब कोई भी उस नाम पर क्लिक करेगा प्रोफाइल उसी इंसान की खुलेगी जिसका आपने नाम डाला है...बस उसकी तस्वीर नहीं होगी....और लोग यही समझेंगे टिप्पणी उसी ने की...आप सफल हो गए अपने मंसूबे में...
 

और बाकी लोग कर लेवें जो करना चाहते हैं....आप तो जी आराम से तमाशा देखिये...और अपनी पीठ ठोकिये...क्योंकि ब्लोग्वाणी की भी औकात नहीं कि वो अब कुछ कर लेवे...
हाँ नहीं तो...!!

Tuesday, April 20, 2010

माफ़ी चाहती हूँ लिखना ही पड़ा... अब झेल नहीं पा रही हूँ ये तमाशा...

फिरदौस ने लिखा है..

ज़रूरी ऐलान
कई 'असामाजिक तत्व' हमारे नाम से अपने ही ब्लॉग में कमेन्ट लिख रहे हैं... और उस पर क्लिक करने पर हमारा ब्लॉग खुलता है...
हम इन 'असामाजिक तत्वों' के ब्लॉग का बहिष्कार कर चुके हैं...हम न तो उनके ब्लॉग पर कोई कमेन्ट लिखते हैं और न ही अपने ब्लॉग पर इन 'असामाजिक तत्वों' के कमेन्ट प्रकाशित करते हैं...ये लोग किस क़द्र नीचता पर उतर आए हैं... इस वक़्त अल्लाह और उसका रसूल भी इन्हें देखे तो उनकी आंखें भी शर्म से झुक जाएं...
अल्लाह के बंदे इस क़द्र नहीं गिर सकते...ये लोग जिसे बहन कहते हैं, उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हैं... तो ये दूसरे मजहबों की मां-बहनों के साथ क्या करेंगे... कहने की ज़रूरत नहीं...

हमने अपने ब्लॉग पर जो लिखा है, उस पर क़ायम हैं...


माफ़ी चाहती हूँ लिखना ही पड़ा...
अब झेल नहीं पा रही हूँ ये तमाशा...


कई दिनों से ये तमाशा देख रही हूँ...बदतमीज़ी  की सारी हदें पार कर रहे हैं लोग ...

हमारी एक बहन ने अपनी बात अपनी डायरी  में क्या कही और लोगो के पेट में मरोड़ होने लगा...
अब उसके नाम के पोस्ट लिख-लिख कर क्या साबित करना चाहते हैं...???

http://swachchhsandesh.blogspot.com/2010/04/blog-post_20.html


साहिर लुधियानवी का ये नगमा...कुछ
(सभी नहीं ) घटिया दिमाग मर्दों की सारी कारस्तानियों का कच्चा चिटठा है ...वो उन मर्दों (सभी नहीं ) को उनकी असलियत बता रहे हैं और ये कह रहे हैं कि तुम सम्हल जाओ...शर्म करो और हो सके तो डूब मरो कहीं जाकर...जिस कोख से जन्म लेते हो उसी कोख को बदनाम करते हो...


हाथ कंगन को आरसी क्या....आप ही देखिये, बहन कहते हो और बहन को ही कदम-कदम पर बदनाम कर रहे हो....ऐसे भाई हैं तो फिर दुश्मनों की क्या ज़रुरत है....उसकी एक ज़रा सी बात बर्दाश्त नहीं हो रही आपलोगों से....जबकि अपने-अपने दिलों से पूछो क्या गलत कहा है उसने...एक-एक हर्फ़ सही है... उसकी बातों में....एक लड़की को बेईज्ज़त करने की हर कोशिश की जा रही है ....और सारा ब्लॉग जगत सिर्फ तमाशा देख रहा है....लानत है....!!!
 

फिरदौस आज के ज़माने कि एक समझदार, पढ़ी लिखी, बहुत नेक और उम्दा ख्यालों की लड़की है...उसने अपने ख्याल सबके सामने रखे हैं जो भी कहा है बिल्कुल ठीक कहा है....समय के साथ बदलाव ज़रूरी है...हम लोग पाषाण-युग के नियम यहाँ नहीं लगा सकते....एक लड़की या नारी होने से पहले हम इंसान हैं... कोई गाय बकरी नहीं कि खूंटे में बंधने चले आयेंगे....और अब ये तमाशा बंद किया जाए...
हाँ नहीं तो....!!
बसस्सस्सस्स 

कच्चा घड़ा मेरे दम का, तूफ़ान में टूटा न था.....


था वो मंजर कुछ गुलाबी, रंग भी छूटा न था
दिल में इक तस्वीर थी और आईना टूटा न था

हादसे होते रहे कई बार मेरे दिल के साथ
आज से पहले किसी ने यूँ शहर लूटा न था

चुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर 
सब्र का प्याला मगर ऐसे कभी फूटा न था

रौनकें पुरनूर थीं और गमकता था आसमाँ
झाँक कर देखा जो दिल में एक गुल-बूटा न था

मंजिलें दरिया बनीं और रास्ते डूबे 'अदा'
मेरे दम का कच्चा घड़ा, तूफ़ान में टूटा न था

इस शेर ने मुझे कल से परेशान किया हुआ था .....शायद अब ये ठीक हो ..
'दम' की जगह 'साँस' भी हो सकता था ...लेकिन दम मुझे ज्यादा पसंद आया..


Monday, April 19, 2010

शैतान बेमौत ही मर गया.....


मौला ने एक बार
होश गँवाया
बेहोशी के आलम
में इन्सान बनाया
इन्सान बना कर
उसे वो समझ न पाया
सोचता रहा
ये कुफ्र है या
परेशान सा साया
जमीं तो मैंने
जन्नत सी बनाई
फिर कैसे यहाँ आज मुझे
दोज़ख नज़र आया
हाल अजब देख
ख़ुदा भी पछताया
कुछ सोचता रहा
फिर तरकीब लगाई
इन्सान रस्ते पे आ जाए
ये जुगत जुटाई
इन्सान की बेहतरी
के लिए शैतान बनाया
इन्सान तो शैतान को
इक आँख न भाया
शैतान ख़ुश हुआ
और मन में मुस्काया
पर इन्सानी फितरत
ने फिर तमाशा
वो दिखाया
शैतान देखता रहा
पलक न झपका पाया
बेटे ने बाप को मार गिराया
बाप ने बेटे को कितना सताया
माँ बेच आई थी
दुधमुंहे लाल को
भाई ने बहन को
अपनी विधवा बनाया
बाप ने अपनी ही
बेटी की अस्मत
उतार दी
डाक्टर ने मरीजों की
ज़िन्दगी चुरा ली
और बहन ने भाई को
कहीं का न रखा
रक्षक जो थे
उनसे कोई बच न सका
डिग्रियां शिक्षक से
छात्रों ने  लूट ली
तो कहीं गुरु ने  बेटी की
इज्ज़त ही लूट ली
कोई  सारे रिश्तों से
आज़ाद हो गया
और कहीं
देखते ही देखते 
किसी ने आज़ादी बेच दी
इंसानों के होते रहे
यूँ ही लाखों फ़ितने
कब तक वो देखता
और देखता कितने
इन्सान की हैवानियत से
शैतान डर गया
और देखो न आज वो 
बेमौत मर गया........

Sunday, April 18, 2010

मैं स्वयं हूँ रचयिता अपने संसार का ...


सत्य और असत्य ने 
रचा है यह संसार
जैसा मैं सोचूं 
वैसा ही है यह संसार
मैं स्वयं हूँ
रचयिता अपने संसार का
स्वामी भी मैं 
दृष्टि  भी और 
दृश्य  भी 
मैंने ही रचा है निज को
अपने विचारों से,
यह सारा खेल
ही है विचारों का
जो साझा है
विष और अमृत का,
जैसा मनन वैसा मन,  
विवेक मथानी चाहिए
विचार के समुद्र 
को मथने के लिए 
मथोगे तो
निकलेंगे 
सदविचारों  के रत्न
जो ले जायेंगे 
मोक्ष के पथ पर,
और कहीं जो
विपरीत हुए तो 
धकेल देंगे तुम्हें 
गहनतम अन्धकार  में 
और तब तपोगे नरक के 
गर्त में,
क्योंकि तुम्हारे विचार
तुम्हारा नरक बन जायेंगे, 
सोच लो
विचार लो
विचार भ्रमित तो करते हैं 
लेकिन
ये विचार ही तो हैं जो
व्यक्तित्व का निर्माण 
करते हैं.....


Saturday, April 17, 2010

अमावस की रात....

  लोग सताए हुए हैं
मत उलझो इनसे
कुछ भी कर जायेंगे
प्यार की आदत नहीं इनको
इतना दोगे तो मर जायेंगे
खोल चढ़े हुए चेहरों में     
अमावस की रात है   जिसको देखते ही
सच्चाई की नदी उतर जाती है
फिर चाहो कि न चाहो
नकाबों के हाथों
एक बार फिर इंसानियत मर जाती है ....   

Friday, April 16, 2010

इक ज़रा सी मेरी भी नज़र भर जाए तो अच्छा है....


अब तू मेरी आँख से उतर जाए तो अच्छा है
मेरे दिल से तू अपने ही घर जाए तो अच्छा है

बड़ा नाज़ुक वो ख्वाब है जो मैंने बचा रखा है
ग़र छूटे ये हाथ से फिर बिखर जाए तो अच्छा है

ये माना ग़ज़लगोई पेचीदगियों का मसला है 
बस इक शेर हमसे भी सँवर जाए तो अच्छा है

बिठा दिए हैं कई दरबान दिल के दरो दाम पर
बस तू इनकी नज़र बचा गुज़र जाए तो अच्छा है

इफ़रात घटाएँ रेत की घिर आई हैं आज 'अदा'
इक ज़रा सी मेरी भी नज़र भर जाए तो अच्छा है


Thursday, April 15, 2010

वो जो दौड़ते से रस्ते हैं, ठहर जायेंगे...


वो जो दौड़ते से रस्ते हैं, ठहर जायेंगे
तब सोचेंगे लोग कि वो किधर जायेंगे

वो शहर बस गया है सहर से पहले
 
ये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे 

पहुँचे हैं कगार पर, आस है बाकी   
यकीं है ये दिन भी सुधर जायेंगे

शिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं
गेसू मेरे 
ग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे

उम्मीद के हंगामों में शामिल है 'अदा' 
नज़र भर देख लो हम निखर जायेंगे 


Wednesday, April 14, 2010

कितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं....


पशे चिलमन में वो बैठे हैं हम यहाँ से नज़ारा करते हैं
गुस्ताख हमारी आँखें हैं आँखों से पुकारा करते हैं

कोताही हो तो कैसे हो, इक ठोकर मुश्किल काम नहीं 
मेरी राह के पत्थर तक मेरी ठोकर को पुकारा करते हैं

पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते हैं
कितने तो उन मयखानों में  रात गुजारा करते हैं

हम खानाबदोशों को भी है किसी सायबाँ की दरकार 
नज़रें बचाए जाने क्यों हमसे वो किनारा करते हैं 


जब डूबते हैं पहलू में 'अदा' गोशा-गोशा गदराता है
हम हुस्न-ए-मुजसिम लगते हैं वो नज़र उतारा करते हैं


Tuesday, April 13, 2010

मैं......दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती...



मैं !  
अनादि काल से
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती
बन कर जन्मती रही हूँ , 
करोड़ों सर
झुकते रहे
मेरे चरणों में,
और दुगुने हाथ
उठते रहे 
मेरी गुहार को,
झोलियाँ भरती रही मैं,
कभी दुर्गा, 
कभी लक्ष्मी,
और कभी सरस्वती बन कर ,
मेरे भक्त, 
कभी साष्टांग तो 
कभी नत मस्तक 
होते रहे 
मेरे सामने 
और मैं भी,
बहुत सुरक्षित रही
तब तक, जब तक
अपने आसन पर
विराजमान रही
लेकिन,
जिस दिन मैंने  
आसन के नीचे 
पाँव धरा  
मैं दुर्गा;
जला दी गई,
मैं लक्ष्मी;
बेच दी गई,
और मैं सरस्वती;
ले जाई गई
किसी तहख़ाने में
जहाँ,
नीचे जाने की सीढ़ियाँ तो बहुत थीं
पर ऊपर आने की एक भी नही...


Monday, April 12, 2010

'बदना' रे बद ना ........




आज कल मन कई बातों की विवेचना में लगा हुआ है, जब मैं लोगों को अपने जीवन में कुछ 'वस्तुओं' या 'क्रियाओं' को ज़िन्दगी से भी ज्यादा अहमियत देते हुए देखती हूँ तो सोचने को विवश हो जाती हूँ, आखिर ऐसा क्यूँ  है...?
चीजों को तर्क,  काल, उपयोगिता और परिवेश के हिसाब से देख रही हूँ...तो पाती हूँ कि भौगोलिक परिस्थितियाँ हीं आवश्यकताओं को जन्म देतीं है, जो आविष्कार करने के लिए प्रेरित करती हैं, उसी तरह वस्तुओं की उपलब्धि भी उसकी उपयोगिता निर्धारित करती है, और तब हम उन 'वस्तुओं' या 'क्रियाओं' को अनुशासित  करने के लिए 'धर्म' से जोड़ कर रीति-रिवाज़ या संस्कार का जामा पहना कर जनमानस के जीवन का अभिन्न अंग बना देते हैं....जैसे 'बुर्का, इसपर मैंने एक आलेख लिखा था आप यहाँ  पढ़ सकते हैं...

कुछ दिनों पहले हमारे शहर के मशहूर उर्दू के शायर के घर में एक मुशायरा था , मुझे भी आमंत्रण था, उनके घर अक्सर जाती हूँ, वो बहुत ही प्यारी शख्सियत के मालिक हैं..और एक नामचीन शायर हैं, देश विदेश में बहुत नाम है, वो मेरे लिए पिता-तुल्य  हैं,  उनका बहुत ही आलीशान घर है, एवं बहुत ही प्रभावित करता हुआ माहौल ...लेकिन जब भी मैं उनके बाथरूम में जाती हूँ उनके हर बाथरूम में रखे हुए 'बदने' को देख सोच में पड़ जाती हूँ...

'बदना' जो एक टोंटी लगा हुआ बर्तन है....सोचती हूँ,  जिसने भी इस बर्तन का आविष्कार किया है कितना दूरदर्शी होगा.., गौर से देखिये इसे, तो पायेंगे यह बर्तन सही मायने में पानी बचाने और उसकी अधिकतम उपयोगिता में सहायक है,

साउदी अरब में पानी की किल्लत हमेशा से रही है, पानी सोने से ज्यादा कीमती है ...हालांकि अब की बात और  है..अब वहाँ की हरियाली  देखने लायक है..लेकिन  पानी को बच्चा-बच्चा इज्ज़त देता है...और क्यूँ न हो जो वस्तु बहुत  मेहनत से मिलती है वो कीमती होती ही है 'बदने' को एक धार्मिक ज़रुरत बना कर लोगों तक पहुंचाया गया, पानी के महत्त्व की बात बताई गई और पानी की किफायत करने का हर तरीका अपनाया गया, 'बदने' के उपयोग से पानी की बचत अपने-आप होने लगी जो बहुत अच्छी बात हुई , यह उस परिवेश के लिए बहुत बड़ी देन बना, इस्लाम में पानी को बहुत महत्त्व  दिया गया है, गौर से देखा जाए तो 'वाटर  मैनेजमेंट' जैसी बात नज़र आती  है...जो बहुत ही प्रशंसनीय है...

लेकिन 'बदने' का रूप ही बदल गया जब यह दूसरे देशों में पहुँचा, ज़माने के साथ, धर्म के साथ जुड़े होने के कारण पानी की उपयोगिता या जल संरक्षण जैसी बात कोई सोचता ही नहीं है..बस इसे इसलिए अपनाया जाता है क्यूंकि इसे अपनाने के लिए कहा गया है, अब 'बदना' एक उपयोगी बर्तन नहीं सिर्फ़ 'इस्लामिक चिन्ह' बन कर रह गया है ...इस बर्तन के साथ एक धर्म ख़ुद-ब-ख़ुद  जुड़ गया, परिणाम यह हुआ कि दूसरे  धर्म के लोग इसके उपयोग से कतराने लगे ...और इसकी किस्मत देखिये, मुसलमानों के लिए अजीज़ है ये और दूसरे धर्मों के लिए हिकारत...और इस फ़ालतू के झगड़े में एक बहुत ही उपयोगी बर्तन ने अपना लक्ष्य खो दिया...

पानी की सही तरीके से उपयोग करने की एक क्रिया और है जिसे 'वज़ू' करना कहते हैं ....आपने  देखा होगा ..वज़ू करने के लिए चुल्लू  में पानी लिया  जाता है और हाथ ऊपर  करके पानी नीचे की तरफ छोड़ा जाता है, जिससे पानी हथेली से होता हुआ पूरे हाथ में कोहनी तक जाता है, और इस तरह की प्रक्रिया को 'वजू' करना कहा जाता है,  इसका भी कारण है पानी की  बचत....maximum  utility   of  water ...जो बहुत ही अच्छी बात है..पानी की  बचत होनी  ही चाहिए...और  अगर ये बात धर्म के साथ जोड़ दिया जाए तो सब इसे  मानते भी हैं....लेकिन कितने लोग इसे उस नज़र से देखते हैं...शायद कोई नहीं....यह भी 'इस्लामिक क्रिया' बन कर रह गया है जबकि इसका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है....यह मात्र परिवेश जन्य  क्रिया है...





हमारे  पड़ोस में इरफ़ान चाचा रहते थे...हर सुबह  वो दतवन  करते और उस दतवन को   जहाँ तक इस्तेमाल कर चुके होते थे उसे तोड़   कर बाकी रख दिया करते थे   ...जबकि बाकी लोग दांत साफ़ करने के बाद,  दतवन को बीच से चीर कर जीभ साफ़   किया करते थे...इरफ़ान चाचा का  कहना था कि ऐसा वो नहीं कर सकते क्योंकि   उनके धर्म में मनाही है...तब मैं बहुत छोटी थी,  नहीं समझ पाई...आज बैठ कर सोचती हूँ...तो जो बात मुझे समझ आई वो ये हो सकती है ..कि साउदी अरब  में सिर्फ बबूल की झाड़ियाँ  मिलतीं  थी वो भी बहुत कम...उस ज़माने में ब्रुश का आविष्कार नहीं हुआ था, और दाँत साफ़ करना ही था, ज़ाहिर सी बात है दतवन भी कीमती था, उसे बचा कर  ही रखना  था...और निःसंदेह यह वनों को बचाने में सहायक रही होगी...

जल संरक्षण, वन संरक्षण जैसी बातें समाज के लिए उपयोगी ही नहीं बहुत ज़रूरी हैं, लोगों तक इस सन्देश को पहुंचाना अपने आप में बहुत ही तारीफ की बात है, धर्म का उपयोग करके इसे मनवाना भी बहुत ही अच्छी बात है....लेकिन अनुशासन और कट्टरता में फर्क है, अगर कोई समुद्र के बीच में बैठ कर 'वजू'  दूसरे तरीके से कर ले तो उसे ग़लत नहीं समझना चाहिए...या फिर जंगल  में पूरे दतवन का इस्तेमाल कर ले तो वो भी ग़लत नहीं होना चाहिए.....ये 'क्रियाएं'' और 'आविष्कार' अनुपम हैं और उनकी सही उपयोगिता को न समझते हुए मात्र 'चिन्ह' या 'रिवाज़' बना देना उन विद्वानों की सोच और दूरदृष्टि की तौहीन करना है...जिन्होंने भविष्य को देखते हुए इतने अच्छे नियमों को बनाया था...

Sunday, April 11, 2010

टाईटैनिक.....



पिछली एक सदी से
मेरे जज़्बात टाईटैनिक की मानिन्द
उम्मीद के सूखे बर्फ की चट्टान
से टकराते रहे हैं
सारे सपने एक एक कर
दम तोड़ते जा रहे हैं
कोई डूब गया तो कोई ठिठुर गया,
किसी ने छलांग लगा दी,
तो कोई सहम कर घुट गया
पर एक थकी सी कल्पना
अभी तक जिन्दा है
हाथों में टिमटिमाता ख़्वाब लिए
जो किसी भी पल महकने को तैयार है

गीत सुनिए....दिल लगा लिया मैंने तुमसे प्यार करके...


Saturday, April 10, 2010

हँसी के मुखौटे...


इस शहर में अब
कोई रोता नहीं है
सब हँसते
हुए मिलते हैं
क्योंकि
यहाँ अब सिर्फ
हँसी के मुखौटे
बिकते हैं...


Friday, April 9, 2010

आज फिर तुम मुझसे लड़े हो......



आज फिर
तुम मुझसे लड़े हो
कितना अल्ल-बल्ल बोलते हो
बस बोलते ही जाते हो
और मैं सुनती रहती हूँ
बाकी नहीं रखते तुम
अपने कमान का
कोई भी तीर
हर तीर ज़हर बुझा
और निशाना सही होता है

मैं ही कहाँ उपक्रम करती हूँ 
बचने का 
तीर, सारे निशाने
पर ले लेती हूँ
आह ..!
दर्द के वलवले 

उबलती सी आँखें
और वो उड़ते हुए
दिल के परखच्चे,
तुमने कहा था ,
मुझे रुलाना 
तुम्हें अच्छा लगता है
तभी तो मेरा रोम-रोम 
ज़ार-ज़ार रोता है
पर
जाने क्यूँ 

लड़ते-लड़ते
मोहब्बत सब कुछ
समेट लेती है
और मेरा पूरा वजूद
आकंठ प्यार में 

डूब जाता है
अपने आँसू मैं तुम्हारी

आस्तीन में पोंछ
तुम्हारे सीने में छुप 

जाती हूँ
तुम भी मुस्कुरा कर 

अपनी उंगलियाँ मेरे बालों 
में उलझा देते हो
और हम दोनों भूल जाते हैं
कि आज क्या हुआ था !!